व्यवधान
अब और ज्यादा इम्तेहान मत लो
जिंदगी तो दे ही दी है जान मत लो
घर बनते है साथ-साथ रहने से
जरूरत से बड़ा मकान मत लो
अपने घर की फुलवारी ही सुंदर है
अहम के नशे का बागान मत लो
जमीन पर ही वापस लौट आना है
हद से ज्यादा ऊंची उड़ान मत लो
दुख दर्द अपने सुनाकर गैरों को
तमाशबीनों का एहसान मत लो
जो, जितना, जैसा मिला सब कर्मों का फल है
नेक नीयत रखो सद्कर्मों में व्यवधान मत लो।
प्रीति सुराना
वाह वाह प्रीति जी
ReplyDeleteकितनी नेक समझाइस है आपकी।
कमाल कर दिया।
नई पोस्ट पर स्वागत है आपका 👉🏼 ख़ुदा से आगे
बहुत बढ़िया
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