Saturday, 12 October 2019

व्यवधान

व्यवधान

अब और ज्यादा इम्तेहान मत लो
जिंदगी तो दे ही दी है जान मत लो

घर बनते है साथ-साथ रहने से
जरूरत से बड़ा मकान मत लो

अपने घर की फुलवारी ही सुंदर है
अहम के नशे का बागान मत लो

जमीन पर ही वापस लौट आना है
हद से ज्यादा ऊंची उड़ान मत लो

दुख दर्द अपने सुनाकर गैरों को
तमाशबीनों का एहसान मत लो

जो, जितना, जैसा मिला सब कर्मों का फल है
नेक नीयत रखो सद्कर्मों में व्यवधान मत लो।

प्रीति सुराना

2 comments:

  1. वाह वाह प्रीति जी
    कितनी नेक समझाइस है आपकी।
    कमाल कर दिया।
    नई पोस्ट पर स्वागत है आपका 👉🏼 ख़ुदा से आगे 

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  2. बहुत बढ़िया

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