Tuesday 10 September 2019

विसर्जन

विसर्जन

          बहुत दिनों से नीति परेशान सी खोई खोई सी रहती थी। हर पल में विचार आते जाते रहते। सुमित के साथ रहते हुए उसने हर पल साथ दिया उसके हर संकल्प और विकल्प में। अपना दायित्व निभाते हुए उसने वो स्वर्णिम काल होम कर दिया जो उसके जीवन के सबसे स्वर्णिम पल हो सकते थे। भावनाओं में बहकर सोचा ही नहीं कि सुमित उस रिश्ते में बंधा ही नहीं जो वो निभा रही है और लगातार उसकी क्षमताओं का दोहन करता रहा केवल अपने स्वार्थ के लिए।
          जब तक कुछ समझ पाती या सुमित के असली मंतव्य को भांप पाती शादी को 4 साल हो गए। जब-जब मुखर होकर सुमित को गलत राह पर जाने से रोकना चाहा, हर बार ऊंची आवाज में उसके ही शब्दों को दोहराकर उल्टी दिशा में बात ले जाकर मानसिक रूप से प्रताड़ित करने लगा। आदर्शवादिता का चोला पहने सुमित की शिकायत करती भी तो किससे?
           कालोनी में गणेश उत्सव की चहल-पहल शुरू हो गई थी। चंदा मांगने वालों में अगुआ सुमित ही था क्योंकि ये उसकी लत बन गई थी, किसी भी आयोजन में पैसे इकट्ठे करना और आधे पैसे खुद की जेब में,..! नीति को जगह-जगह शर्मिंदा होना पड़ता। अकसर बातें उसे पता ही लोगों से चलती, क्योंकि सुमित समाजसेवा के नाम पर दिनभर घर पर रहता और नीति नौकरी करती थी क्योंकि स्वाभिमानी थी आत्मनिर्भर होकर जीवनयापन करना उसका प्रण था।
            आज अनंत चतुर्दशी है, सुबह से ही घर में क्लेश, हाथापाई, लड़ाई-झगड़े थक गई नीति, छुट्टी का एक दिन भी चैन नहीं। सूजी हुई कलाई को देखते हुए सोच रही थी कि माता-पिता अवसाद से घिर जाएंगे यदि उनके पास चली जाऊं। मन ने कहा, सुमित से अलग होना वो भी नहीं चाहती पर कुछ वक्त की दूरी बहुत जरूरी है।
            दूर जाने का एक ही उपाय नज़र आया। उसने बॉस से तुरंत बात करके अपनी मजबूरियाँ स्पष्ट की और ठान लिया मन से डर के आज ही विसर्जन का। ट्रांसफर का आदेश कल ही मिल जाने के आश्वासन के साथ ही नीचे जाकर कालोनी के गणेश विसर्जन में शामिल हुई।
              जाते हुए बप्पा से याचना की कि बप्पा अगले बरस जब तुम यहाँ आओ तब तक सुमित को मेरे अस्तित्व का भान हो जाए, मैं लौटकर वापस यहीं आ सकूँ और निर्भय होकर अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ सकूँ। आज तुम्हारे साथ हर दुख, निराशा और डर का विसर्जन करके अगले बरस तुम्हारे साथ मेरी गृहस्थी की खुशियाँ भी लौट आए इस उम्मीद के साथ जा रही हूँ अपने कर्मपथ पर।
           एक खत सुमित के नाम छोड़कर वो स्थानांतरित हो नए शहर की ओर चल पड़ी। उसे उम्मीद है सुमित को गलतियों का अहसास और प्यार की अहमियत महसूस होगी और वो जल्दी ही उसे लेने आएगा।

प्रीति सुराना

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