भेड़िया आया!
निधि रोज बोलती रहती थी अब सब कुछ सहने की सीमा के बाहर है या तो मैं तुम्हारे गुनाह दुनिया को बता दूँगी या फिर खुद को खत्म कर दूंगी। निहाल बार-बार ये सुनता, निधि का गुस्सा ठंडा होते ही फिर वही झगड़े, मारपीट, गाली-गलौच! निहाल ऑफिस में होकर भी व्हाट्सअप पर मैसेज कर करके पूरे समय मानसिक प्रताड़ना देने से बाज न आता था। और तो और गुस्से में निधि ने कुछ भी कहा तो उस बात को मुद्दा बनाकर फिर से नई प्रताड़ना। जाने क्या था प्रेम, भय या थोपे गए संस्कार जो उसे सच सबको बताने से रोकते थे।
उस पर भी यदि फिर निधि ने शिकायत की बात की तो साफ कहता ये धमकियाँ किसी और को देना भेड़िया आया भेड़िया आया इतनी बार कह चुकी हो कि इन धमकियों से मैं नहीं
डरता।
कुछ दिन हुए निधि ने मौन धारण कर लिया, न कोई क्रिया न कोई प्रतिक्रिया। उसके मौन पर भी बहुत मुद्दे बनाने की कोशिश की पर सुधार कुछ भी नहीं।
आज वो सुबह आई जिसमें निहाल द्वारा प्रताड़ना के तमाम दस्तावेजों से भरा निधि का फोन निधि के सिरहाने पड़ा था, जिससे कुछ देर पहले तमाम जरुरी लोगों को सारी जानकारी एक साथ मेल करके निहाल को आखरी मैसेज किया कि मैंने भी भेड़िया आया कहानी सुन रखी थी इसलिए अंत में कुछ बदलाव कर दिया।"
"इस बार भेड़िया आया तो पर शिकार पहले चला गया, लोग आए और भेड़िया पकड़ा गया" क्योंकि सारी दुनिया को सच बताकर निधि दुनिया से कूच कर चुकी थी ।
प्रीति सुराना
सुन्दर प्रस्तुति
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