Friday, 23 August 2019

अंतर्वेदना

अंतर्वेदना
जब-जब
चरम पर होती है
हृदय
अपशब्दों के साथ
चीखना-चिल्लाना चाहता है
मस्तिष्क
हर एक भेद से आवरण हटाकर
नग्न वास्तविकता सामने रख देना चाहता है
कलम
रामायण-महाभारत और गीता से भी
कहीं वृहद पुराण लिखकर
सब कुछ अमिट कर देना चाहती है
अधर
जाने कितना कुछ अनकहा
जहर की तरह उगल देना चाहते हैं,..!

लेकिन भीतर बैठी
नियति, धरती, मातृ,
स्त्री, शक्ति, सृष्टि समझाती है
तुझे सहना है
सहनशीलता तेरी कमजोरी नहीं
विनाश को रोकने की ताकत है
उन लोगों की मूर्खता पर हँस
जो कह रहे है तुझे
शक्ति की जगह अबला
और
रोक प्रलय को,
बदल समय को और सिखा सबक
नित अलग-अलग नौ रूपों में,...!
इस आत्मविश्वास के साथ
जीत नवमी को हो या दशमी को
पूनम को हो,अमावस को हो
या किसी भी तिथि या वार को
इतिहास गवाह है
जीतना सत्य को ही है
और
सहना भी सत्य को ही है,..!

मैं भी
अधरों को सी कर
मौन रहकर
प्रतीक्षा कर रही हूँ सही काल की,..!

प्रीति सुराना

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