यकीनन
निरंतरता, तरलता और सरलता की
मौलिक प्रवृति के बाद भी,..
ढलान से
कलकल करती मनोरम झरने की
प्राकृतिक सुंदरता के बावजूद भी,..
कभी, कहीं,
किसी न किसी तट पर,
किसी न किसी ढलान पर,
किसी न किसी मोड़ पर,
कुछ पल
नदी भी ठहरना चाहती होगी,..
लेकिन
जब-जब
जहाँ-जहाँ
उसने थमना चाहा
या तो प्रदूषण और मलीनता उसके हिस्से में आई
या फिर वो सूख गई
इससे बचने की विवशता के चलते
सारे अवरोधों को पार करती हुई
नदी सतत चलती रहती है
ये जानते हुए भी
उसकी नियति
सह अस्तित्व के नियमानुसार
अंततः सागर में मिलकर
खारा हो जाना ही है
फिर भी मलीनता
और
समय से पूर्व अस्तित्वहीन हो जाने की बजाय
निरंतरता को बरकरार रखते हुए
नियति को स्वीकारते हुए
समर्पण की भावना लिए
सागर में विलीन होना ही चुनती है,..!
पर मुझे पूरा विश्वास है
कुछ पल
नदी भी ठहरना चाहती होगी,..
हाँ!
बिल्कुल मेरी तरह,..!
प्रीति सुराना
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