बहुत गहरे में भीतर मन के
कुछ तो है जो चुभता है,
नहीं होता है हरदम वो ही
बाहर से जो दिखता है,
लाख लगा लूँ पहरे मन पर
मुस्कानों से गम को कैद करूँ,
पढ़ ही लेते हैं जो अपने हैं
आँखों से जो रिसता है,...!
प्रीति सुराना
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बहुत गहरे में भीतर मन के
कुछ तो है जो चुभता है,
नहीं होता है हरदम वो ही
बाहर से जो दिखता है,
लाख लगा लूँ पहरे मन पर
मुस्कानों से गम को कैद करूँ,
पढ़ ही लेते हैं जो अपने हैं
आँखों से जो रिसता है,...!
प्रीति सुराना
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (13 -07-2019) को "बहते चिनाब " (चर्चा अंक- 3395) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteअंतस की वेदना की मार्मिक अभिव्यक्ति! बहुत सुंदर!
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