Wednesday 24 April 2019

पहल

पहल

         सुबह से बेचैन सी थी पिन्नू!
         अपनी परिस्थितियों से सामंजस्य नहीं बिठा पाने की बेचैनी के कारण किसी काम मे मन नहीं लग रहा था।
          तभी उसका फोन बजा।
और फिर,..
           सभी को अपने दुखों से लड़ने की नहीं जीतने की आदत होनी चाहिए और इसके लिए मन पर नियंत्रण बहुत जरूरी है। जिस वजह से दुख फला-फूला है उस वजह को मन से दूर कर दो और ये तभी संभव है जब मन से पुराने विचारों की जड़ों को उखाड़ कर फेंक दो और नए विचार तुरंत रोप दो। मन को खाली मत रखो, व्यस्त हो जाओ और नए अंकुरों के पनपने, बढ़ने, फलने-फूलने का इंतज़ार करो और आगे बढ़ जाओ तुम्हारे सपने तुम्हारी राह देख रहे हैं।
          पिन्नू ने अभी-अभी अपनी सहेली निशा को ये से सब फोन पर कहा और फोन रखते ही धम्म से आकर सोफे पर बैठ गई।
          कुछ पल यूँ लगा जैसे दिमाग सुन्न हो गया है जो कुछ कहा वो उसने कहा सोचकर हैरान भी थी।
           थोड़ा खुद को संभाला और संतुलित होकर बालकनी में आकर अपनी सजाई हैंगिंग फुलवारी की सार-संभाल में जुट गई।
         उसे महसूस हो गया था जो निशा से कहा वो उसने नहीं उसके मन ने कहा और मन की सुनने की सलाह पर अमल की *पहल* उसे खुद से करनी होगी।
         अपने इस निर्णय पर खुद ही खुश होकर मुस्कुराती हुई गुनगुनाने लगी,...
"छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिए,
ये मुनासिब नहीं आदमी के लिए...!

प्रीति सुराना

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