रोज कुछ न कुछ
'घटता' है, 'जुड़ता' है,
कभी खुशियाँ कई 'गुना' हो जाती है,
कभी हँसी कहीं 'भाग' जाती है,...
ये "जोड़-घटाव, गुना-भाग"
जिंदगी गणित सी लगती है,..
पल-पल का करें "हिसाब"
लिखें जिंदगी को रोज थोड़ा-थोड़ा
बन जाएगी न जाने कितनी ही "किताब",..!
लिखेंगे न,...?
प्रीति सुराना
संस्थापक
अन्तरा शब्दशक्ति
www.antrashabdshakti.com
बहुत सुन्दर
ReplyDeletedhanywad
Deleteकोशिश जारी है। पर लिख कहाँ पाते हैं?
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ReplyDelete__/\__