Saturday, 9 March 2019

लिखेंगे न?

रोज कुछ न कुछ
'घटता' है, 'जुड़ता' है,
कभी खुशियाँ कई 'गुना' हो जाती है,
कभी हँसी कहीं 'भाग' जाती है,...
ये "जोड़-घटाव, गुना-भाग"
जिंदगी गणित सी लगती है,..
पल-पल का करें "हिसाब"
लिखें जिंदगी को रोज थोड़ा-थोड़ा
बन जाएगी न जाने कितनी ही "किताब",..!

लिखेंगे न,...?

प्रीति सुराना
संस्थापक
अन्तरा शब्दशक्ति
www.antrashabdshakti.com

4 comments: