अप्रतिम पल
आज शब्दशक्तियों ने
परस्पर मिलन समारोह (गेट-टू-गेदर) रखा।
बातों ही बातों में
अभिधा ने
लक्षणा से कह ही दिया
कि तुम तो फिर भी दिख जाती हो
अपने उदाहरणों में
इसलिए समझना आसान होता है
पर ये व्यंजना
न जाने कितने अर्थ लिए रहती है अपने भीतर
जिसे देखो अपने अलग ही अर्थ में
व्यंजना को साथ लिए चलता है,..।
सुनो!
गुलाबी ठंड में
हल्की गुनगुनी सुनहरी धूप में
आज मिलना बहुत सुखद लगा।
कभी-कभी
अभिधा, लक्षणा, व्यंजना का
यूँ मिलकर
जिंदगी की अनूठी कहानियाँ बुन लेना
अप्रतिम पल होता है,...!
ये भी तो
प्रेम का एक रंग ही है,.. है न!!!
प्रीति सुराना
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