आरोपी
समीर मैं सिर्फ इतना कहना चाहती हूँ कि हर बार हमारे झगड़े की वजह मेरी ही किसी बात को बताना और फिर हर परिस्थिति का जिम्मेदार मुझे बता कर पूरी तरह आरोपी की तरह कटघरे में रखना ये समाधान कतई नहीं हो सकता, कभी तो जहाँ मैं हूँ वहां आकर समझने की कोशिश की होती कि मेरी सोच, मेरी भावनाएँ, मेरी नीयत क्या थी?
देखो प्रियंका तुम फिर यही साबित करने की जिद कर रही हो कि तुम सही हो और मैं तुम्हे यही समझना चाहता हूँ कि,...
बस! यही मैं नहीं चाहती कि हर बार तुम्हारी बात यहीं से शुरू हो कि मैं समझाना चाहता हूँ क्योंकि मुझे भी ये लगता है कभी-कभी तुम्हे भी समझने की जरूरत है चाहे तुम कितने भी समझदार क्यों न हो हर बार सामने वाला नासमझ हो जरूरी नहीं है। कभी ये भी सोचा जाना जरूरी है कि परिस्थितियाँ क्या थी?
ओके! तुम जब समझना ही नहीं चाहती तो मैं भी इतना फुरसत में नहीं हूँ कि तुम्हे समझाने में वक्त बरबाद करूँ। रहो अपनी ही सोच के साथ कि तुम सही हो।
ओके! मैं बार-बार गलत होने के आरोप के साथ रहने की बजाय ये सोच कर रह लूँगी कि मैं नासमझ हूँ और समझदार सिर्फ तुम हो जिसने कभी कोई गलती की ही नहीं। तुम्हे बहुत मिलेंगे जिन्हें समझाओ कि उनकी गलतियाँ क्या-क्या है। तुम्हारे साथ, तुम्हारे लिए और तुम्हारे बाद भी जीने वाले कितने ही रिश्ते होंगे पर आज तुमने आरोपी घोषित करते हुए तुमने वो रिश्ता खो दिया जो तुम्हारे लिए जान दे सकता था।
दोनों ही तरफ से फोन का डिसकनेक्ट होना और एक खूबसूरत रिश्ते का पटाक्षेप। दोनों ही जानते हैं कि जिंदगी में ये सारे अहसास और विश्वास किस्मत से मिलते हैं। अहम की लड़ाई में प्रेम हार गया और अब दोनों ओर सिर्फ आरोपी खड़े हैं रिश्तों के न्यायालय में किस्मत के फैसले के इंतज़ार में।
प्रीति सुराना
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