सूखे पत्ते की मानिंद
पेड़ से टूटा सूखा पीला पड़ा पत्ता,..
वही
जिस पर लोग तरस खाते हैं
और कहते हैं
बेचारा
साख से टूटकर अस्तित्व खो बैठा,..
पर
क्या कभी, किसी ने
पूछा उस पत्ते से
कि वास्तव में
वो खुद क्या महसूस कर रहा है टूटकर,..
मैंने महसूस किया
जी ली उसने पूरी उम्र
अपनी शाखाओं को हराभरा रखने के लिये
धूप, बारिश, ठंड और पतझड़ में भी
अपने वजूद को समर्पित करके,...
हर हाल में परस्थितियों से जूझते हुए
काट लिया पूरा जीवन
आज पहली बार
वो शाख से लटके हवा में हिलने की बजाय
उड़ सकता है हवा के साथ, हवा की दिशा में,..
और
जब तक भी जीवन शेष है
खुली हवा में मुक्त जीवन जीकर
अंत में भी जब मिट्टी में मिले
तो खाद बनकर किसी नई संभावना को
जन्म देने का निमित्त बनकर जीवन सार्थक कर लेगा,....!
हाँ! सचमुच मैं हो जाना चाहती हूँ
पेड़ से टूटे सूखे पीले पड़े पत्ते की मानिंद,..!!!
प्रीति सुराना
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