पति परमेश्वर
शाम के लगभग 5 बजे थे। कालोनी के सामने बने पार्क में इस वक्त काफी लोगों का आना जाना रहता है।
शीला पार्लर से लौट रही थी, आदतानुसार माधुरी ने आवाज़ लगाई 'कहाँ से आ रही हो शीला, बड़ी जच रही हो क्या बात है?
शीला ने कहा अरे यूँ ही जरा पार्लर हो आई आज वैलेंटाइन डे है न तो डिनर पर जाना है।
ओहो! गज़ब की बात है, कौन है तुम्हारा प्रेमी? करवाचौथ का व्रत तो तुम करती नहीं जो पति से प्रेम करो?
अचानक ये सुनकर शीला अचकचाई और दूसरे ही पल गुस्से में बोल पड़ी 'मेरा पति परमेश्वर नहीं बल्कि पति ही है, सुख-दुख का साथी, दोस्त और प्रेमी सबकुछ।' जिस पति को परमेश्वर मानकर आप पूजती हैं उसी पति के लिए परमेश्वर से प्रार्थना करती हैं ??
'जिनके पति परममेश्वर होते हैं उन्हें शायद किसी और वैलेंटाइन या प्रेमी का अर्थ कुछ और हो।' ये कहती हुई शीला वहाँ से बिना रुके आगे निकल गई और माधुरी की सोच पर अब भी आवक थी।
माधुरी के मन में एक ही पल में हज़ारों सवाल छोड़ आई शीला।
प्रीति सुराना
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