Saturday 29 December 2018

अनवरत नदी सी

मैं
बह रही हूँ
अनवरत
नदी सी
रास्ते में जो मिला
सुख-दुख
आँसू-हँसी
अच्छा-बुरा
कम-ज्यादा
क्योंकि
यात्रा का निर्धारित
अंतिम पड़ाव सागर ही है,...!

सुनो!
याद है न
तुमको तुम्हारा सागर होना?

फिर
लाख अवगुण हो नदी में
सागर नहीं नकारता
नदी के अस्तित्व को
खुद में समाहित करने से
क्योंकि
वो जानता है
सागर की उदारता
नदी के समर्पण के बिना संभव भी तो नहीं,... !

प्रीति सुराना

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