Saturday 29 December 2018

लौट आना,...

लौटाना,
लौट आना
और लौट जाना
कितना अजीब है
शब्दों का भ्रमजाल
पर स्पष्ट हों सारे अर्थ
तो सुनने और समझने में
बिल्कुल सहज,..

सुनो!
तुम समझते हो
मुझे मुझसे ज्यादा
तो लौटाना मेरे हिस्से की धूप,..
क्योंकि वाकई लौट जाना चाहते हैं
अब अंतस के गहरे काले बादल,..
और लौट आना चाहते हैं
सुनहरे आस के पँछी एक बार फिर,..
आस, विश्वास और एहसास
ये भी मिलकर पाना चाहते हैं
अपने हिस्से का आकाश,..

लौट आना
और लौटाना सारे एहसास
खुशियों के पलों का लौट जाना
कर रहा है उदास
हाँ! प्रेम था,
प्रेम है,
प्रेम रहेगा,... रखना विश्वास
जिंदा रखती है मुझे
तुम्हारे साथ होने की आस,...

क्योंकि,... ये सच्चा है और ये प्रेम ही है,..!!!

प्रीति सुराना

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