Tuesday 25 December 2018

किन्नर की दुआ

जल्दी जल्दी में शांता ने अपना काम निबटाया और घर से निकल ही रहा था कि सोनिया ने आवाज़ दी। शांता तौलिया देना मैं लेना भूल गई।
बाल पोंछती हुई बाथरूम से निलकते ही बोली जल्दी मेरी चाय बनाओ और मम्मी उठे तो बता देना मैं कॉलेज जा रही देर से लौटूंगी।
क्यों सोनिया बेबी आज देर से क्यों?
अरे शांता तुम तो मेरी दोस्त अरे नहीं! नहीं! तुम तो मेरे दोस्त हो,.. अरे यार तुम ही बताओ कि तुम मेरी या मेरा क्या हो? ये बोलते ही सोनिया खिलखिलाकर हँस पड़ी।
शांता का चेहरा लगभग रोने को हो गया था एक पल के लिए।
दूसरे ही पल शांता ने खुद को संभालते हुए पूछा बेबी तुम बता रही थी देर से क्यों आओगी, क्यों वो बताओ?
अरे शांता, कॉलेज में मेरे साथ चंदन पढ़ता है न, उसके साथ डेट पर जाना है। पर तुम मम्मी से कुछ मत कहना।
सोनिया बेबी मम्मी से तो नहीं पर तुमसे एक बात जरूर कहनी है, क्या तुमने चन्दन से पूछा कि वो मेरी है या मेरा?
कल रात हमारी बस्ती में उसकी अपने साथियों से चर्चा चल रही थी जिसमें तुम्हारी डेट का जिक्र सुना था मैंने। और आज मुझे जल्दी इसलिये जाना था ताकि चंदन को रोक सकूँ ।
सोनिया तुम और चंदन दोस्त हो सकते हो पर वो नहीं जो तुम चाहती हो।
कहीं कल को हमारी बिरादरी की तरह तुम्हारा मजाक न बन जाए ,... क्योंकि किन्नरों का दर्द नर या नारी न समझ पाएंगे न सह पाएँगे। ये कहकर काम खत्म करते हुए सोनिया से विदा ली। जाते जाते सिर पर हाथ रख कर कहती गई सदा खुश रहो,...तुम्हे मनचाहा साथी मिलेगा,.. किन्नरों की दुआ खाली नहीं जाती, बेबी मैं मेरी या मेरा नहीं किन्नर हूँ किन्नर,...समझी।

डॉ प्रीति सुराना
संस्थापक
अन्तरा-शब्दशक्ति
वारासिवनी (मप्र)
9424765259

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