बेहिसाब दर्द है दिल में तो राहत कैसे लिखूँ
नाराज़ हूँ अगर खुदसे तो चाहत कैसे लिखूँ
निभा रही हूँ जब पल पल गुलामी वक्त की
तो अपने किरदार की बादशाहत कैसे लिखूँ
थमेगा
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बेहिसाब दर्द है दिल में तो राहत कैसे लिखूँ
नाराज़ हूँ अगर खुदसे तो चाहत कैसे लिखूँ
निभा रही हूँ जब पल पल गुलामी वक्त की
तो अपने किरदार की बादशाहत कैसे लिखूँ
थमेगा
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