Wednesday 15 August 2018

मैं और धरती

आज
पैरों में बहुत तकलीफ थी
चलते-चलते तीखा दर्द उठा
कराह कर बैठ गई वहीं जमीन पर,
अकेली थी
आसपास कोई न था,
जाने क्यों
अचानक लगा
जैसे धरती धीरज बंधाने को आतुर
थोड़ी उष्ण सी हो गई
ताकि मेरे दर्द में कुछ राहत पहुँचे,
खुद बखुद मेरे हाथ जमीन पर टिके
मानो धरती मेरी सखी सी
मुझे सांत्वना देती हुई मेरा हाथ थाम रही हो,...

अचानक
मन का एक मूक संवाद सा शुरू हुआ
मेरे और धरती के बीच,..

मैं विचलित थी अपने ही दर्द से
धरती ने कहा
धीरज रखो सखी
मैं समझ सकती हूँ तुम्हारी पीड़ा
मैंने कहा
तुम सा धीरज मुझमें आता ही नहीं,
तुम कितना सहती हो
मौन रहती हो,
मुझसे कहो
शायद मैं तुम सी सहनशील हो जाऊं,...

धरती ने कहा
मेरा जीवन मेरा कहाँ सखी?
रात सूरज के इंतजार में,
दिन चन्द्रमा की शीतलता की बाट जोहते
कटता है,
सीना पेड़ों की जड़ों को संभाले और आदमी की कुल्हाड़ियों और हलधर के हल से घायल,
उसपर कभी बारिश घाव सूखने नहीं देती,
कभी ताप घावों को जलाता है,
कभी उम्मीद के सितारे भरमाते हैं
कभी हवाएँ खुशियों की अफवाह फैलाती है
दूसरे ही पल बैरन खुद आंधी बन जाती है,..

ऐसा नहीं कि मैं समझती नहीं
प्रकृति के पैंतरे
मुझे भी आता है कभी कभी बहुत तेज गुस्सा,
फिर कभी भूकंप और कभी जलजले
या ज्वालामुखी सी फूट पड़ती हूँ
लेकिन शांत होते ही
लावे की जलन
और खुद के टूटने की पीड़ा भी खुद ही सहती हूँ,
और सबसे अधिक पीड़ा
अपनों को ही हुई तकलीफ और विध्वंस से होती है,...

फिर संभालती हूँ खुद को
कि सिर्फ मेरे मौन और मेरे सह लेने से
अगर मुझमें जीवन की संभावनाएं जीवित है
तो सह लूँ सबकुछ चुपचाप,..
जानती हूँ चाँद सूरज तारे हवा पानी
कुछ भी मेरा नहीं है
पर इन सबके होने के लिए मेरा होना जरूरी है,...

जानती हो सखी
ये सहनशीलता मैंने किससे सीखी?
मैंने विस्मित होकर पूछा किससे?
उसने कहा स्त्री से,..
जिसका खुद का कुछ नहीं
पर जीवन की संभावनाओं को
अपनी कोख से जनने के लिए
सहती है प्रसवपीड़ा
और फिर
जीवनभर
उसी संतति की खुशी की खातिर
पल-पल जीवन के सारे रसों
और सारे रंगों में खो बैठती है
खुद का वास्तविक स्वरूप,..
फिर भी जीती है मृत्यु तक
तमाम पीड़ाओं और संभावनाओं को
खुद में समेटे,...

सुनो सखी!
स्त्री को धरती की उपमा
और धरती को स्त्री का प्रतिरूप इसलिए कहते हैं लोग..

इसी संवाद के चलते
अचानक मेरे आसपास
पदचाप सुनकर
धरती ने मेरा हाथ छोड़ दिया
और मैं
पीड़ा भूलकर उठ खड़ी हुई
जिम्मेदारियां अभी बाकी हैं,.....

प्रीति सुराना

2 comments:

  1. बहुत सुन्दर रचना
    आपको स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई!

    ReplyDelete
  2. बहुत गहन विचारों की अभिव्यक्ति

    ReplyDelete