Thursday 28 June 2018

"स्वच्छ भारत,स्वस्थ भारत"

*"स्वच्छ भारत,स्वस्थ भारत"*

एक महत्वपूर्ण विचारणीय तथ्य है कि आजादी  की 71 साल बाद भी हम भारतीय विश्व में अस्वच्छता, आलस्य और अस्वस्थता के लिए जाने जाते हैं  जबकि हम भारतीय  बहुत ही धार्मिक और पवित्र सोच के हैं, पर हमारी स्वच्छता और पवित्रता सिर्फ हमारी पूजा गतिविधियों और,घर और रसोई तक ही सीमित है। अकसर हम हमारे घरों को साफ़ करते करते वही कचरा सार्वजनिक जगहों में फ़ेंक  देते है । हम अपने आसपास के वातावरण को साफ़ और स्वच्छ  बिलकुल नही रखते। ये हमारे लिए एक शर्म की बात है कि हम यत्रतत्र गन्दगी का ढेर देख सकते हैं।
      *स्वच्छ  भारत अभियान* भारतीय सरकार द्वारा चलाया जाने वाला एक राष्ट्रव्यापी सफाई अभियान है जिसके द्वारा भारत को स्वच्छ बनाया जायेगा। इस अभियान में शौचालयों का निर्माण करवाना, पीने का साफ़ पानी हर घर तक पहुँचाना, ग्रामीण इलाकों में स्वछता  कार्यक्रमों को बढ़ावा देना, सड़कों की सफाई करना आदि शामिल है
*स्वच्छ भारत अभियान को क्लीन इंडिया मिशन (Clean India Mission) या क्लीन इंडिया ड्राइव* भी कहा जाता है । स्वच्छ भारत का सपना  सबसे पहले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने देखा था । इस सन्दर्भ में महात्मा गांधी ने कहा था "स्वच्छता स्वतंत्रता से ज्यादा जरुरी है” क्योंकि निर्मलता और स्वच्छता दोनों ही स्वस्थ और शान्तिपूर्ण जीवन का अनिवार्य अंग है।
महात्मा गांधी को सच्ची श्रद्धांजलि के रूप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने स्वच्छ भारत अभियान 2 अक्टूबर 2014 को राजघाट, नई दिल्ली से शुरु किया । गांधी जी के सपने को गांधी जी के 145 वें जन्मदिन से 150 वें जन्मदिन 2 अक्टूबर 2019 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा ।
प्रधानमंत्री मोदीजी ने कहा कि भारत को स्वच्छ बनाने का काम किसी एक व्यक्ति या अकेले सरकार का नहीं है स्वच्छ  भारत अभियान को एक *जन आन्दोलन* में बदलना चाहिए यही राष्ट्रपिता को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
     प्रधान मंत्री मोदीजी ने खुद मंदिर मार्ग पुलिस स्टेशन में स्वच्छता अभियान शुरू किया और एक मंत्र दिया की हम *“न गन्दगी खुद करेंगे और न दूसरों को करने देंगे।”*
          देश के बड़े-बड़े फ़िल्मी कलाकारों, उद्योगपतियों और नेताओं से श्रृंखलाबद्ध योजना के अंतर्गत बहुत सफल प्रयास अब तक जारी है।
           वर्तमान परिवेश से , स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से और समाज में फैल रही मानसिक बीमारियों के परिपेक्ष्य में स्वच्छता अभियान को जोड़कर कुछ अन्य तथ्यों पर भी विचार करना आवश्यक लगता है।
क्योंकि
*जब मन स्वच्छ तो मन स्वस्थ*
*जब तन स्वस्थ तो धन पुष्ट*
*तन-मन-धन पुष्ट और पर्याप्त*
*तो निश्चित ही जन जीवन संतुष्ट,...*

स्वास्थ्य का सीधा-सीधा नाता स्वच्छ्ता से है। स्वच्छ्ता द्वारा तन-मन-धन और जन जीवन को स्वस्थ रखने की संभावनाएं प्रबल हो जाती है इसलिए सतत सफाई अभियान जारी रहने चाहिए  लेकिन विचारणीय विषय ये है कि सफाई किसकी, कितनी, कब, कैसे और क्यों?

*स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले तीन प्रमुख कारक निम्नलिखित तीन समस्याएँ हैं।*
1. मानसिक समस्याएँ
2. शारीरिक समस्याएँ
3. आर्थिक समस्याएँ

*1. मानसिक समस्याएँ:-* एक स्वस्थ मन ही स्वस्थ शरीर और स्वस्थ समाज का आधार बन सकता है। जब मन विकार मुक्त होगा तो स्वस्थ विचारधारा का जन्म होगा। भारत की संस्कृति भावनात्मक प्रवृति की है। भारतवासियों की कमजोर कड़ी आस्था, परम्परा और कुरीतियों के नाम पर होने वाले पाखंड हैं जो मन को या तो अवसाद से ग्रस्त कर देते हैं या अति आत्मविश्वास से मुग्ध,..। और ऐसे में जन्म लेती है अनेक विकृतियां जैसे कुकर्म, चोरी, झूठ, हिंसा, वैभवलोलुपता, लालच, क्रोध, अहम, बैर, राग-द्वेष, अपराध आदि। और आज जिस परिवेश में हम जी रहे हैं, शायद ही कोई मन इन विकारों से पूर्णतः मुक्त हो।

*2. शारीरिक समस्याएँ:-* शिशु के जन्म लेने के पूर्व से मृत्युपर्यन्त अनगिनत व्याधियों का घर होता है शरीर। वर्तमान में प्रदूषण, संक्रमण और वातावरण सभी ने शरीर को कमज़ोर बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी उस पर मन की बीमारियों ने *उत्प्रेरक* की भूमिका निभाई है। जन्म से मृत्यु तक अनेकानेक टीकाकरण भी पूर्ण स्वास्थ्य का माध्यम नहीं बन पाते।

*3. आर्थिक समस्याएँ:-*
आर्थिक पक्ष रोग और निदान दोनों ही पहलुओं को प्रभावित करते हैं। और  आर्थिक विषमता स्वास्थ्य का एक महत्वपूर्ण कारक है। क्योंकि उच्च वर्ग झूठन  से शौचालय तक की सफाई के लिए निम्नवर्ग पर निर्भर है। खासकर सेनेटरी पैड्स और डायपर्स की अत्याधुनिक सुविधाओं ने नालियों और शौचालयों के निकास मार्ग को ही अवरुद्ध नहीं किया बल्कि इनमें प्रयोग किये जाने वाले जैल नुमा रासायनिक पदार्थों और पालिथिन्स ने पृथ्वी की नमी को बहुत तेजी से सोखना शुरू कर दिया है। विशेष ध्यान देने योग्य बात यह है कि ये सामग्रियां अपवहन योग्य (डिस्पोजल) नहीं होती। एक मात्र प्रक्रिया जलाए जाने पर भी इसमें निहित अपशिष्ट पदार्थ वातावरण में शेष रहता है और जल, थल, वायु सभी को प्रदूषित करता है। इसे साफ करने वाले कर्मचारी वर्ग और पशु-पक्षी बहुत अधिक मात्रा में असाध्य रोगों के संक्रमण के वाहक बन जाते हैं। उच्चवर्ग और निम्नवर्ग के बीच संक्रमण और सफाई अभियान जैसे अनेक आंदोलनों का माध्यम बनकर व्यथित रहता है मध्यम वर्ग क्योंकि न उच्चवर्ग की तरह जीवन शैली को अपना पाता न निम्नवर्ग की तरह सहन और वहन कर पाता, ऐसे में पनपती है आपराधिक और कुत्सित मनोविकृतियाँ जिसका असर पूरे समाज और देश को भुगतना पड़ता है।

*अपेक्षित निदान*
विचारणीय है कि सफाई किसकी कितनी कब और कहाँ होनी चाहिए:-

1. मन के विकारों को दूर करने के लिए सबसे पहले आस्था, रीतियों और परम्परा के नाम पर हो रहे पाखंड और ठगी के व्यापार को रोक लगानी होगी। धर्म, आस्था और नाम के लोभ में दान आदि के नाम पर हो रही घटनाएं- दुर्घटनाएं, व्यभिचार और अनैतिकता को बढ़ावा दे रही। इन विकारों को रोकने के लिए योग , ध्यान और स्पर्श चिकित्सा, वृक्षारोपण, साक्षरता अभियान, स्वच्छता अभियान, प्रदूषण उन्मूलन जैसी अनेकानेक योजनाओं को केवल सरकारी कागज़ों में न होकर अमलीजामा पहनाना होगा क्योंकि इन कार्यों के द्वारा मनोविकारों पर नियंत्रण किया जा सकता है और 'मन चंगा तो कठौती में गंगा' । मन को स्वस्थ रखकर समाज और देश को स्वस्थ मानसिकता प्रदान की जा सकती है।

2. शरीर की व्याधियों को नियमित टीकाकरण के साथ-साथ स्वस्थ मानसिकता और संतुलित, संयमित और व्यवस्थित दिनचर्या के माध्यम से कम किया जा सकता है। योग, शाकाहार, सावधानी, उपचार और रोग उन्मूलन के द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है। सरकारी योजनाओं का उपभोग ही नही बल्कि एक स्वयंसेवक की भांति स्वहित में रोगोपचार हेतु सफाई और सावधानी रखना सीखना और सिखाना होगा।

3. आर्थिक विषमताओं को दूर करने के लिए केवल कालेधन की सफाई ही अनिवार्य नहीं है  बल्कि और भी महत्वपूर्ण पहलुओं पर विचार अनिवार्य है। निम्नवर्ग को मिल रही अतिरिक्त सुविधाओं और योजनाओं ने उनके स्तर को उठाने में मदद तो की है किन्तु आलस्य और कर्महीनता को बढ़ावा दिया है। वहीं दूसरी ओर चौड़ी सड़कों और बहुमंजिला इमारतों के निवेशकर्ताओं ने वृक्षों और वायुमंडल को हो रही क्षति को अनदेखा किया है और मध्यम वर्ग इन सब से परे अपना जीवन इंटरनेट और अनेक तकनीकियों के जरिये अपने स्तर को ऊंचा दिखाने की कोशिश में अपने स्वास्थ्य को बरबाद कर रहा है।आपराधिक और विकृत मनोवृतियों से बचने के लिए नैतिकता और स्वस्थ वातावरण का बीजारोपण जनमानस को ही करना होगा।
         *आज तीनों ही वर्ग शिकार हैं मन तन और धन की विकृतियों, व्याधियों, और गंदगी से। जिससे जब तक वो खुद न चाहे छुटकारा नहीं पा सकता।*
सबसे बड़ी सच्चाई ये है कि पहले मन की सफाई हो तो मन और विचार स्वस्थ हो, स्वस्थ मन से स्वस्थ और पुष्ट तन बनें, स्वस्थ तन से कार्यक्षमता और संभावनाएं बढ़े, कार्यक्षमताओं और संभावनाओं से आर्थिक सुदृढ़ता बढ़ेगी और आर्थिक सक्षमता बढ़ने से मानसिक विकृतियां काम होंगी, आपराधिक प्रवृतियों पर रोक लगेगी और सांस्कृतिक विरासत को बचाने के लिये मानसिक आर्थिक सामाजिक और शारीरिक सभ्यताओं को जीवित रखना अनिवार्य है, तभी तो तन-मन-धन-जन स्वस्थ, सुंदर और सुदृढ़ होंगे और *स्वच्छ भारत, स्वस्थ भारत* का निमार्ण संभव होगा।

*विचारें*

*विकार केवल मन के ही तो नहीं*
*बीमार केवल सभी तन से ही तो नहीं*
*रखनी होगी सफाई तन-मन-धन की*
*तभी होगा जन जीवन हष्टपुष्ट और सही।*

*डॉ. प्रीति सुराना*

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