Wednesday 2 May 2018

सिसक सिसक कर रातें रोई

सिसक सिसक कर रातें रोई
आह न सुन पाया पर कोई,
तुमको खोया जिसपल मैंने
किसमत सोई,खुशियां खोई,..

बांधा था मिलजुलकर हमने
सुख-दुख दोनों का गठबंधन,
ढीले कैसे होने दें जो
मन से मन का है अवगुंठन,
चैन नहीं मिलता दिन रैना
बरसे नैना नींदें खोई,...

सिसक सिसक कर रातें रोई
आह न सुन पाया पर कोई,...

चमक दमक वाली दुनिया में
मन को पलभर चैन नहीं है,
फल कर्मों के भोग रहे सब
चिंतन बस दिन रैन यही है,
लेकिन नूर गया सूरत का
रंगत भी जीवन की खोई,...

सिसक सिसक कर रातें रोई
आह न सुन पाया पर कोई,...

तेरी ही आँखों में मैंने
डाले थे सपनों के डेरे,
मेरी सीमाएं थी हरदम
तेरी ही बाहों के घेरे,
घेरे तुमने जब से तोड़े
रात नहीं कोई मैं सोई,...

सिसक सिसक कर रातें रोई
आह न सुन पाया पर कोई,..

*डॉ.प्रीति सुराना*

2 comments:

  1. http://bulletinofblog.blogspot.in/2018/05/blog-post_2.html

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  2. बहुत ही खुबसुरत गीत

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