ओ अन्तस् के मान हठीले
और तुम भी सुनो मौजो !
अपनी हद में रहना !
ये चुनौतियों भरे संवाद के बाद
अधूरी कविता से भी
आदमी को..मजबूत बनाकर..
उम्र के पड़ाव हारकर बैठने से बेहतर है ,
बढ़ते चलना,... ये रहस्य बताकर
सीधी..सपाट....राहें.. हो या टेढ़ी मेढ़ी
रुकती है किसी न किसी
पड़ाव पर आकर
सब को ये समझाकर
खुद से पूछा एक सवाल
खुद को धोखा कितनी बार !!
फिर भ्रम से अपनी लेखनी को
दूर हटाकर
किया एक सुंदर निर्णय
मैं अब से
न राग लिखूँ, न प्रेम लिखूँ,
प्यारा हिन्दुस्तान लिखूँ...
ऐसे रचनाकार को मैं
नमन लिखूँ, वंदन लिखूँ
शुभकामनाएँ हज़ार लिखूँ
दुआएं बार बार लिखूँ
प्रीति सुराना
http://bulletinofblog.blogspot.in/2018/04/blog-post_17.html
ReplyDelete