हां !
मैं बनूंगी मजबूत
रखूंगी धैर्य
जीयूँगी जिंदगी
पूरी शिद्दत से
थामकर तुम्हारा हाथ
भूलकर अपनी हर कमजोरी,..
अब करना है पार
मुझे हर परीक्षा,
और हर पड़ाव
सिर्फ इसलिए
क्योंकि जुड़ा है
तुम्हारा सपना
मेरी सफलता से,...
सुनो!
मैं देखना चाहती हूँ
तुम्हारे चेहरे पर
संतोष की वो लकीरें
और मुझे शिखर पर देखकर
तुम्हारे चेहरे पर आने वाली
अमिट मुस्कान,...
अब चलना सिर्फ इसलिए है कि
पहुंचना है मुझे मंजिल पर
जहां मेरी सफलता नहीं बल्कि
तुम्हारी खुशी कर रही है मेरा इंतजार,....
प्रीति सुराना
06/11/2017



आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (08-11-2017) को चढ़े बदन पर जब मदन, बुद्धि भ्रष्ट हो जाय ; चर्चामंच 2782 पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'