Sunday 5 November 2017

धरोहर

सुनो!
कल मैं रहूं न रहूं
मेरी बातों को
दरकिनार मत करना
छोटे-छोटे सपनें
छोटी-छोटी खुशियां
और
तुम्हारा मेरा साथ
पर
मेरी अनुपस्थिति को
भरना हमेशा अपनी उपस्थिति से
मेरे बाद,
जानती हूं मैं
जिस तरह करते हो हिफ़ाजत
तुम मेरी,
संभालोगे तुम ही मेरे सपनों को
धरोहर की तरह,
बड़ी जिम्मेदारी सौंप रहीं हूँ तुम्हें,
टूटे चुभते दुखते रिसते घाव,..
और उनके बीच खुशियों की
नन्ही सी उम्मीद
मेरे सपनें
जिसे मिटाने की भरसक
कोशिशें की है
कुछ गैरों ने अपना बनकर
कुछ मतलबपरस्तों ने सरपरस्त बनकर
पर यकीनन सिर्फ और सिर्फ तुम ही हो
जो पूरा करोगे मेरे सपनों को
मैं बनकर
क्योंकि जिंदा हो
हमेशा मुझमें
सिर्फ तुम
कहीं न कहीं,...
बोलो!!!!
दोगे न साथ मेरा यूँही
मुझे जीकर
मेरे बाद भी
*मेरे तुम*,..

प्रीति सुराना

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (07-11-2017) को
    समस्यायें सुनाते भक्त दुखड़ा रोज गाते हैं-; 2781
    पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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