Thursday 19 October 2017

पंछी

सुनो!!
मुझे आदत नहीं
खटखटा कर जाऊं द्वार
किसीकी चौखट पर,
इसलिए
मैंने तुम्हारे दिल में ही
बसा लिया है अपना घर,
बाहर सिर्फ रोजी रोटी की व्यवस्था में
निकलना होता है
पंछी की तरह,
शाम को लौटना होता है अपने घर
अरमानों और सपनों की
परवरिश जो करनी होती है
क्योंकि जन्म दिया है तो जिम्मेदारी भी है
तुम्हारा साथ निभाना भी धर्म है मेरा
पर फिर भी
तुम समझते नहीं
अपने घर मे राज करती हूं
रानी बनकर।

प्रीति सुराना

0 comments:

Post a Comment