Saturday, 14 October 2017

सीमाएं लांघ रही हूं

घुमड़ रहे भावों को कबसे थाम रही हूं
अधरों पर मुस्कानों के सेतु बांध रही हूं
भीतर ही भीतर बींध रहा है दर्द मुझे
हंसकर सहने की सीमाएं लांघ रही हूं

प्रीति सुराना

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