Saturday, 21 October 2017

सृष्टि के वैविध्य का दर्पण

सुनो!

साहित्य के नौ रस
श्रृंगार से वात्सल्य तक,
दुनिया के नौ रंग
श्वेत से श्याम तक,
शक्ति के नौ रूप
शीतला से कालिका तक,

आभूषणों के नौ रत्न
माणिक्य से मोती तक,
ज्योतिष राशि के नौ ग्रह
सूर्य से केतु तक,
आध्यात्म के नौ पद
चरित्र से चरम तक,

संसार के नौ तत्व
जीव से मोक्ष तक,
और यहाँ तक भी कि
भूत से भविष्य तक,
यथार्थ से स्वप्न तक,
घर से मंजिल तक,

मैं से अहम तक,
मुझ से तुम तक,
हर बात और शब्द-शब्द में
नव भाषा और नव व्याकरण
नव भावों के गलियारे से
ढूंढूंती नित नए समीकरण

खुशियों में से आंसू चुनकर
पीड़ाओं को पढ़ती हूँ
कभी तुममें लिखती हूं खुद को
कभी खुद में तुमको गढ़ती हूं
तुमसे दूर रहकर प्रेम
तुम्हारे साथ रहकर विरह

समाज में व्याप्त भ्रांतियां
और देश का गृहकलह
दोस्तों की कट्टी बट्टी
दुश्मनों से सुलह
सुख में दुख, दुख में सुख
असंभव में संभावनाएं

अपनी ही लेखनी में समझूँ
पाठकों की समालोचनाएँ
कहते हैं छल का प्रतीक है गिरगिट
पर उसी गिरगिट से सीखी है मैंने
प्रकृति के रंग में ढलकर
आत्मरक्षा की कलाएँ

हाँ
मैं रचनाकार हूं
मुझमें हर पल मिलेगी विविधताएं
मुझसी होकर भी
सिर्फ मेरी कभी नहीं हो सकती कविताएं
सृष्टि के वैविध्य का दर्पण हो सकती है
मेरी रचनाएँ,...

प्रीति सुराना

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