Tuesday 12 September 2017

एक संपादक नही एक इंसान की नज़र से

आज चलन है fb की रचनाओं के विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में संपादक खुद चयन कर लेता है, पर अफसोस तब होता है जब अच्छी रचनाएँ कई बार इसलिए प्रकाशन से वंचित रहती हैं क्योंकि लोग अपना dp नही लगाते,..
        परिवार है मित्र हैं , सिक्योरिटी के ऑप्शन्स हैं फिर भी अपने ही चेहरे से परहेज? वो भी इसलिए की कहीं कुछ गलत न हो जाए।
         बच्चे, स्त्री, और आम आदमी की सुरक्षा की कोई गारंटी नही कम से कम अपनों के भरोसे की वारंटी पर तो जी लो अपने चेहरे के साथ।
         दुर्घटनाएं सावधानी से टाली जा सकती है और खुशफहमियां तो गलतफहमी में भी पाली जा सकती है। तो फिर डर डर कर क्यों लड़कर हालातों से, हँसकर फेसबुक पर फेस दिखाकर मुस्कान को चिकनगुनिया से ज्यादा संक्रामक बनाकर देखो।
      अच्छा लगेगा, सच का सामना दिल से। और बुरी शक्ल के साथ सबके सामने आती हूँ तो यकीनन dp न लगाने वाले तो खूबसूरत चेहरे होंगे।
       अगली मुहीम यही हो कि जहां भी आई डी बने कुदरत का दिया उपहार यानि अपने चेहरे के साथ, पूरे आत्मविश्वास से न कि फूल पत्तों और अन्य साज सज्जा से छुपा बनावटी चेहरा हो।
आज के लिए इतना ही।
शुभरात्रि🙏🏼

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