एक सवाल
क्या मैं सचमुच बुरी हूँ?
क्यों लोग अक्सर मतलब निकलते ही छोड़ जाते है?
या
इस तरह दरकिनार करते हैं
मानो कभी मेरी जरूरत थी ही नही,..।
कशमकश में हूँ
मैं कोई
सामान हूँ
रास्ता हूँ
या फिर इंसान?
ढूंढ रही हूं अपनी *पहचान*
मेरा एक रिश्ता आप से भी है,..।
करेंगे मदद मेरी ये जानने में,.
मैं कौन हूँ?
मैं क्या हूँ?
मैं कैसी हूँ?
आजकल महसूस करती हूं
अनचाहे ही
एक गैरजरूरी बुरी इंसान खुद को,..
जवाब के इंतज़ार में,..
(अभी-अभी)
प्रीति सुराना
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 03-08-2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2686 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद सहित
खुद में खुद की खोज
ReplyDeleteमतलबी दुनिया में अपनी खुद की पहचान जरुरी है
ReplyDelete