Friday 5 May 2017

मेरी परिस्थितियों के लिए "दोषी कौन?"

मेरी परिस्थितियों के लिए "दोषी कौन,..?"
               हम विश्व कल्याण, देश हित, प्रादेशिक विकास, सामाजिक कल्याण, पारिवारिक उत्थान की बातों का हिस्सा हमेशा बनते आए हैं क्योंकि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज मे रहते हुए समाज की व्यवस्थाओं से परे रहना संभव नही है और न ही उसकी जिम्मेदारी से भागना सही है। लेकिन जैसे ही बात व्यक्तिगत जिम्मेदारी की होती है हम झट से पाला बदल लेते है और उंगली हमेशा अपने विपरीत दिशा में होती है।
कोई प्राकृतिक विपदा आई दोषी कौन? 'प्रकृति'
विश्व स्तर की समस्या आई तो दोषी कौन?
'पड़ोसी देश'
देश पर कोई समस्या आई तो दोषी कौन?
'सरकार'
प्रदेश पर कोई समस्या आई तो दोषी कौन?
'नेता और पदाधिकारी'
समाज मे कोई विकृति आई तो दोषी कौन?
'समाज के कर्ताधर्ता'
परिवार में माहौल बिगड़ा तो दोषी कौन?
'परिवार का मुखिया'
पर आपकी खुद की बुराइयों, कमियों, नाकामियों,विकृतियों के लिए दोषी कौन???
अब जवाब ये होता है, समय, परिस्थितियां, पारिवारिक बंधन, समाज, नेता, राजनैतिक माहौल, विदेशी नीतियां, प्राकृतिक विपदाएं और सबसे ज्यादा सरकार,...!!!!!!
क्या हम खुद दोषी कहीं कभी नही??
प्रकृति से परिवार तक हर संस्था की इकाई क्या व्यक्ति नही???
         प्राकृतिक संतुलन बिगड़ रहा है,... आपने कितना सहयोग किया संसाधनों के संरक्षण में? और यदि किया भी तो क्या उतना पर्याप्त है पूरी एक पृथ्वी के लिए, जवाब होगा मैं अकेला थोड़ी हूँ जिसे पूरी पृथ्वी संभालनी है।
          विश्व कल्याण की बात करें तो हम अपने परिवार अपने साम्प्रदायिक मुद्दे, अपनी दिखावे की देश भक्ति, भाषा, त्योहारों और ईश्वर के झगड़े सुलझा पाएं तब विश्व कल्याण होगा। इस विषय पर भी लोगों से बातचीत करने पर यही जवाब मिला जिस देश और समाज मे रहते हैं उसके हिसाब से ही काम और बात करेंगे न? हमे क्या पड़ी है परदेश की सोचें??
             अब देश हित की चर्चा हो कि कालाधन निकलना है, भ्रष्टाचार मिटाना है, सैनिक दल की सुरक्षा करनी है जो देश के प्रहरी हैं, देश को साफ सुथरा रखना है। हमे सब कुछ चाहिए पर हर विपरीत परिस्थिति में 'कड़ी निंदा' के अलावा हम करते क्या हैं, धरना, प्रदर्शन हड़ताल, और जब भी सब्सिडी, छूट और सुविधाएं घोषित हो तो उपभोक्ता के सारे अधिकार किसे चाहिए??
            प्रदेश की सोचें तो क्षेत्रीयता के आधार पर देश को ही भाषा, धर्म और राजनीति के टुकड़ों में बांटा जा रहा, कहीं अपने क्षेत्र की भाषा को मान्यता की लड़ाई तो कहीं जातपात और सम्प्रदायवाद,.. इन्हें उकसाता कौन है, नेता और राजनैतिक दल अपने फायदे के लिए लेकिन चयन करके इनका इसका हिस्सा बनता कौन है??
             समाज का आकलन करें समाज यानी एक विचारधारा, संस्कृति, धर्म और भाषा के लोगों का एक समूह जिससे जुड़े रहने के लिए अगुआओं के बनाए गए नियम कानून के दायरे में रहना अनिवार्य होता है वरना पुलिस की तड़ीपार की सज़ा से ज्यादा कठोर दंड समाज से निष्काषन की होती है। लेकिन ये समाज बनाए किसने???
            परिवार सबसे छोटी सामाजिक संस्था जिसमे रिश्ते, परस्पर निर्भरता और प्रेम का होना अनिवार्य है तो जाहिर है अपेक्षाओं का भी एक स्थान होगा ही?  अब इन्ही परिवारों के विघटन के कारणों पर बात करें तो शुरू होगी कयरीतियों, बंधनो, नियमों से शुरू होकर व्यक्तिगत सोच और स्वतंत्रता की बात। जब आपको केवल अपनी स्वतंत्रता चाहिए तो विघटन की जिम्मेदारी किसकी??
          परिवारों का टूटकर एकल परिवारों में विभक्त होना, और फिर 'छोटा परिवार सुखी परिवार' की अवधारणा को भी ध्वस्त करती जीवनशैली, जहाँ केवल स्वहित की बातें, रिश्तों का घटता महत्व, अनैतिकता का प्रकोप, संबंध विच्छेद, आत्महत्या, बढ़ती आपराधिक प्रवृतियों  विकराल समस्या,... अब दोषी कौन??
             मैं नही,... तुम, तुम नही तो वो, वो नही तो समाज, समाज नही तो क्षेत्र या प्रदेश, प्रदेश नही तो देश, देश नही तो पड़ोसी देश , पड़ोसी देश नही तो विश्व, विश्व नही तो प्रकृति।
प्रकृति, विश्व, देश, प्रदेश, समाज, परिवार और मेरे निजी संबंध जिसकी सबसे महत्वपूर्ण ईकाई "मैं" लेकिन मेरे ही व्यवहार, कार्य, चरित्र और हालात के लिए जिम्मेदार देश- काल- परिस्थिति?
सुधारना 'मैं' को नही है सुधार तो समाज देश और दुनिया में होना चाहिए पर,....
             अंततः दुनिया गोल है अतः समाधान की तलाश में प्रश्न फिर वही,...
मेरी परिस्थितियों के लिए "दोषी कौन?"

प्रीति सुराना

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