Friday 5 May 2017

सपन सलोना

रीता रीता मन का कोना।
टूट गया है सपन सलोना।

महफ़िल का देखा था सपना,
पर तनहाई में है रोना।

फैल न जाये काजल काला,
तुम अपनी पलकें न भिगोना।

अपनो की दुनिया माला सी,
नातों के मोती रोज पिरोना।

जिनको दिल के पास बसाया,
तोड़ चले दिल जान खिलोना।

कब मिल पाता है मनचाहा,
और मिला जो वो भी खोना।

मन को बस ऐसे समझाओ,
कंकर को भी माने सोना।

रोके से कुछ कब रुकता है,
हो जाता है जो हो होना।

'प्रीत' तुम्हारे आंगन में अब,
फसल भरोसे वाली बोना।

प्रीति सुराना

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