जो था अपना सब छूट गया
हालात कठिन रब रूठ गया।
बचपन यौवन सपनें यादें
कोई अपना ही लूट गया।
प्यासा मन मांगे कुछ शीतल
भीतर जहरीला घूंट गया।
सच को ढूंढ रहे थे दर दर
लेकिन था पकड़ा झूठ गया।
सजते दीवारों पर सपनें
वो घर तो मेरा टूट गया।
कांटे राहों में बाकी हैं
गुलशन उजड़ा रह ठूंठ गया।
खार जड़ो में डाला ऐसा
प्रीत सुफल भी सूख गया।
प्रीति सुराना
0 comments:
Post a Comment