लौटी हूँ
अभी-अभी
तनहा अपने घर
एक लंबे सफर के बाद
तुम्हारे पास और सोच रही हूं
मेरे लिए नही है तुम बिन
जीवन का कोई सार,..
मैं नही कहूंगी
कभी भी ये
तुम करते हो मुझपर
*"इमोशनल अत्याचार"*
और
तुम्हारा हर व्यवहार
मुझे है स्वीकार,..
बस तुम
प्यार दो
खुशी दो
सुरक्षा दो
भरोसा दो
निभाओ रिश्तों की सारी
रस्में-कसमें और आधार,..
फिर चाहे
लड़ो-झगड़ो
सताओ
रुलाओ
तड़पाओ
या फिर डाल दो ढेर सारी
अपेक्षाओं का भार,..
मैं हूँ हर परिस्थिति में तुम्हारे साथ
बस निवेदन इतना ही
मेरी ही तरह
पूरे करो तुम भी
पहले सारे कर्तव्य
स्वतः ही मिल जाएंगे
तुम्हे सारे अधिकार,...
प्रीति सुराना
बहुत सुन्दर
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