Wednesday, 22 February 2017

परिधि

मैं वो दोस्त हूं
जो हमेशा दोस्ती निभाउंगी
अपनी जान देकर भी,..
जी लूंगी
दोस्त की ख़ुशी के लिए
दोस्त के बिना,..
जब तक तुम आगे बढ़ते रहोगे
कभी भी अपने रास्ते में
या अपने सामने मुझे नहीं पाओगे
लेकिन (ईश्वर न करे)
जब कभी तुम थकोगे,
रुकोगे,
आसपास खुद को संभालने के लिए सहारा टटोलोगे
या थकान उतारने के लिए
अपनी पीठ टिकाना चाहोगे
यक़ीनन
अपने उसी टटोलते हाथ भर की दूरी में
हमेशा मुझे पाओगे
मैं जीवनसाथी नहीं हूं
नहीं बांटूंगी तुम्हारा घर, बिस्तर, बच्चे,
तुम्हारी विलासिता और वैभव,
सामाजिक जिम्मेदारियां,
या व्यवहारिक कर्तव्य,
पर दोस्त हूं
तुम्हारी कमजोरी नहीं बनूँगी कभी
बल्कि
अपनी पूरी ताकत, शिद्दत, ईमानदारी से
अपना नैतिक दायित्व निभाते हुए
तुम्हारी खुशी के लिए
रह लूंगी दूर तुमसे
पर उम्मीद इतनी ही
कि
रहूंगी साक्षी
सुख-दुख
ताकत-कमजोरी
पराए-अपने
मंजिल-सपने
सफलता-असफलता
हर बात की
और हक़ होगा मुझे बिन कहे
जरुरत पड़ने पर
तुम्हारे साथ साथ
चलने का
हम बना लेंगे दोस्ती का एक वृत्त
बस
तुम परिधि बनना और मैं केंद्र
हां!
मैं निभा लूँगी
हर फासला और रिश्ते का यह दायरा
उम्रभर
बशर्ते तुम खुश रहो हमेशा अपनी परिधि में,...

प्रीति सुराना

1 comment:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 23-02-2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2597 में दिया जाएगा |
    धन्यवाद

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