सुनो!!!
हम खुशकिस्मत हैं न!
क्योंकि
हमारा प्यार भी दोस्ती सा है,..
जिसमें
अपेक्षाएं कम,
विश्वास ज्यादा,
एक दूसरे से
कुछ पाने की ख़्वाहिश कम,
एक दूसरे के लिए
कुछ कर पाने की कोशिश ज़्यादा,
हम झगड़ते भी हैं तो
दोस्तों की नोकझोंक सा,
प्रकृति, व्यवहार, सोच, आदतों
सब में एक दूसरे से बिलकुल भिन्न,
इसीलिए
मनमुटाव, शक, कलह, गुस्सा, नफ़रत,
हर भाव समाहित हमारे रिश्ते में
लेकिन क्षणिक आवेग से,
बस
कुछ स्थायी है
तो वो है समर्पण,..
कभी कभी सोचती हूं
हर रिश्ते में
दोस्ती की मिलावट हो जाए,..
कितना आसान हो जाएगा न
रिश्तों को जीना
रिश्तों को निभाना
बिल्कुल हमारी तरह,..
हम दोनों
एक चुम्बक जैसे
टूटकर भी
हर टुकड़े में
मौजूद होते हैं
दो विपरीत ध्रुवों की तरह
हर सुख में
हर दुख में
हर *कर्म* में
हर *कर्मफल* में,..
हमेशा
साथ-साथ,..
प्रीति सुराना
सुन्दर रचना
ReplyDeleteसुन्दर
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