किसी कुम्हार से पूछना कभी
बिना मिटटी गढ़ पाएगा
कोई भी पात्र
चाहे मटका हो
सुराही हो
चकला और बेलन हो
या बच्चों के खिलौने
नहीं न!!
फिर कैसे मान लिया
आधुनिक कविताएं
गढ़ी जाती है
गद्य को तोड़कर ??
गद्य या काव्य भी तो लिखा होगा
किसी भाव को
अपनी क्षमता से गढ़कर,..
कुछ तोड़ने के पहले
बनाने की कुशलता का परिचय
जरूर दिया होगा।
पर हां!
हो सकता है
ऊपर बैठे सृष्टि के रचनाकार की तरह
जिसने रची अपनी रचनाएं
अनेक विधा,
रूप- रंग,व्यवहार,
विचार और प्रकार की,..
उनमें से
कुछ पकी कुछ अपरिपक्व रह गई,
कुछ को नाम मिला
पहचान मिली
कुछ गुमनाम रह गई,..
कुछ स्वीकृत कुछ तिरस्कृत,
कुछ संवेदनशील कुछ कठोर,
कुछ ज्ञानी कुछ अज्ञानी,
अब किस-किस को
कितना वर्गीकृत किया जाए
"सबकी नियति उसका कर्मफल ही तो है"
रचना और रचनाकार
फिर वो
ईश्वर हो
कुम्हार हो
कवि हो
लेखक हो
या "आधुनिक कविताकार"
अपनी अपनी रचनाओं के नियंता को
होती है पीड़ा उपेक्षा से
और होती है खुशी सफलता से,..
फिर से सुनो!
एक माँ
देती है अपने गर्भ को
अपने लहू का अंश और संस्कार
तब जाकर एक शिशु लेता है आकार,..
उसी तरह
आधुनिक कवि
गद्य को लिखकर यूंही नहीं तोड़ता,
रचता है
हर संभव प्रक्रिया से गुजरकर
एक नए रूप में
अपने भावों का संसार,... प्रीति सुराना
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