खून रगों में डोल रहा है
जय भारत माँ बोल रहा है
किसके भीतर कितना घपला
राज नए नित खोल रहा है
घूस नहीं खाते कहते थे
होश उन्ही का गोल रहा है
भारत को मैला कर डाला
कौन जहर ये  घोल रहा है
जो दिखता था ठोस सतह से
भीतर उसमें पोल रहा है
अब कोई नायक बन बैठा
पापों को देखो तोल रहा है
  
देखा है मैंने ये सब खुद 
सच बिलकुल बेमोल रहा है,...प्रीति सुराना

 

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