Friday 7 October 2016

"अच्छे दिन खुद क्यूं नहीं लाते"

गम पीते हैं गम ही खाते
फिर भी गीत खुशी के गाते

पीड़ा की परवाह नहीं है,
दूजी कोई राह नहीं है,
जो जितना आगे जाता है,
वो उतनी ठोकर खाता है,
देखा है ऊंचे पर्वत पर,
सबसे गहरे बादल छाते,
फिर भी गीत खुशी के गाते,
गम पीते हैं गम ही खाते,..

बारिश में घर मिट्टी के,
मिल जाते हैं मिटटी में,
बेघर वो मजदूर ही हैं,
ऊंचे जो महल बनाते हैं,
पर भाग्य का लेखा लेकर,
वो कर्महीन नहीं हो जाते,
फिर भी गीत खुशी के गाते,
गम पीते हैं गम ही खाते,.

हर रिश्ता है मलतब से ही,
कुछ न गलत है कुछ न सही,
व्यवहारिक हो ज्ञान पिलाते,
बात बात पर स्वार्थ भुनाते,
फिर देते है प्रेम दुहाई,
रह गए हैं ऐसे ही नाते,
फिर भी गीत खुशी के गाते,
गम पीते हैं गम ही खाते,.

सजे घरों में बसी कृत्रिमता,
अपनापन गैरों को दिखता,
अपने दो पल को हैं तरसते,
एहसास हुए हैं कितने सस्ते,
जो कर देते खुद का समर्पण,
बदले में प्रीत न उतनी पाते,
फिर भी गीत खुशी के गाते,
गम पीते हैं गम ही खाते,.

मीठी बातों का हो असर,
चाहे हो वो धीमा जहर,
आंसू का अब मोल नहीं ,
भावों का भी तोल नहीं,
जो भावों में जीते है अब भी,
दुनिया को वो नही सुहाते,
फिर भी गीत खुशी के गाते,
गम पीते हैं गम ही खाते,.

आस नहीं छोड़ी है हमने,
वादा हमसे किया था तुमने,
एक दिन ये सब फिर बदलेगा,
जिसका जो हक़ है वो मिलेगा,
जिसके तुम सपने दिखलाते,
अच्छे दिन खुद क्यूं नहीं लाते,
फिर भी गीत खुशी के गाते,
गम पीते हैं गम ही खाते,. .. प्रीति सुराना

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