Thursday, 4 August 2016

प्रेम का क्या???,

'हम-तुम'
यूं ही लड़ते झगड़ते
हो गए दूर
पर अब भी
बातों का
शिकवों का
आंसुओं और उम्मीदों का
सिलसिला बदस्तूर जारी है,.

पर
क्या तुम्हे लगता है,
हम फिर मिलते
तो सुलझ जाते मसले
और
कसमे वादों की
उलाहनों की
बातें ख़त्म हो जाती,..???

मुझे लगता है
हम मिलते तो शुरू होते
हमारे दरमियान
नए संवाद
नए वाद
नए विवाद
अंततः
बढ़ जाते फासले कुछ और,..

सुनो!!
मुझे लगता है
अगर मिलने से
बात खतम हो जाती
तो
कुछ रिश्तों का
न मिलना भी
बहुत जरूरी होता,..

पर
जिन रिश्तों की जड़ों में
प्रेम
नमी की तरह
बरक़रार हो
वो मिलें
न मिलें
बातें ख़त्म नहीं होंगी,.

और
हमारे बीच
कुछ टूटा है
तो वो है
विश्वास
पर अब
इस बाकी रह गए
प्रेम का क्या???,... प्रीति सुराना

3 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 7 2016 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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