Friday, 8 July 2016

हर बार,..

सुनो!!!
हर बार,..

बिखर कर खुद को समेटती रही बेसुध होकर,
कभी देखा ही नहीं
मुझको कैसे किस किसने तोडा,.??

रही खुद ही खुद के साथ पर हमेशा बेखबर सी,
कभी समझी ही नहीं
मेरा साथ कब क्यूं किसने छोड़ा,..??

बहुत कोशिशें की ज़माने ने मिट जाए हस्ती मेरी
कभी सोचा ही नहीं
मेरा वज़ूद कब कहां किससे जोड़ा,..??

मैं तो करती रही हर पल हंसते रहने की कोशिश,
कभी जाना ही नहीं
गालों पर आसुओं ने निशान क्यूं छोड़ा,..?? ,..प्रीति सुराना

1 comment:

  1. अन्तर्निहित पीड़ा को उजागर करती सुन्दर अभिव्यक्ति -बधाई

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