बिखर गया अब तक बहुत कुछ इरादों की तरह,
टूट रहा है जीवन अब तो वादों की तरह।
सूना है आलम छाई है ख़ामोशी यहां,
होती है बातें भी मूक संवादों की तरह।
आती है लब पर अब भी मुसकान कभी कभी,
घटना ये भी होती है अपवादों की तरह।
मांगा मैंने रब से जब भी कुछ अपने लिए,
मन में तू ही रहता खास मुरादों की तरह।
करती रहती है दुनिया बेवजह सवाल भी,
नाता है सुर्ख़ियों में सनम विवादों की तरह।
न मिल सके न जुदा थे हम कैसा ये बंधन है,
खैर जिंदा तो हैं अब भी हम यादों की तरह।
आज बनी जिंदगी शतरंज की एक बिसात सी,
'प्रीत' यकीनन अहसास बिछे प्यादों की तरह। ,...प्रीति सुराना
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 31 जुलाई 2016 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत आभार आपका
Deleteबहुत सुन्दर पंक्तियाँ
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteधन्यवाद
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