पत्थरों को तोड़कर,ईंट ईंट जोड़कर,
जो खड़ा करे महल,वो ही मजदूर है।
जमींन को खोदकर,बहा अपना सीकर,
जो उगाकर अन्न दे,वो ही मजदूर है।
कपास को धुनकर,ताने बाने बुनकर,
जो बनाकर वस्त्र दे,वो ही मजदूर है।
भूख मिटाने के लिए,रात दिन मरे जिए,
शान सबकी जो रखे,वो ही मजदूर है।
प्रीति सुराना
सही कहा
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