Wednesday 18 May 2016

प्रेम धुन गाई

सुर घनाक्षरी8886

बारिश हुई प्रेम की            
मन की मरुधरा में
सौंधी सी महक उठी
प्रीत तेरी पाई

तूने मुझको छू लिया
मन ने ली अंगड़ाई
सपने मेरे जी उठे
खुशी मन छाई

मन की वीणा बजी
सात सुरों से थी सजी
प्रीत की महफ़िल में
प्रेम धुन गाई

मेरा एक निवेदन
प्रीत कभी न हो कम
छूटे न अब साथ ये
मिटी तनहाई

प्रीति सुराना

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