Sunday 15 May 2016

तुम्हारे लिए

बिखरने मैं लगी फिर तुम्हारे लिए,
संवरने मैं लगी फिर तुम्हारे लिए।

संभलकर किस तरह अब चलूं साथिया,
बहकने मैं लगी फिर तुम्हारे लिए।

राह की ठोकरें तो बहुत खा चुकी,
ठहरने मैं लगी फिर तुम्हारे लिए।

सूख कर चमन मेरा मिला खाक में,
महकने मैं लगी फिर तुम्हारे लिए।

'प्रीत' मुझसे तुम्हे है पता जब चला,
चहकने मैं लगी फिर तुम्हारे लिए। ,..प्रीति सुराना

0 comments:

Post a Comment