गंगोदक सवैया (लक्षी सवैया)
212 212 212 212,
212 212 212 212।
रगण ×8
आसरा दे मुझे नाथ मेरे अभी
हाथ मैं जोड़के द्वार तेरे खड़ा।
है नहीं लायकी काम पूरे करूं
ज्ञान भी है नहीं मैं अनाड़ी बड़ा।
एक तू ही सहारा मुझे साथ दे
हूं अकेला यहां काल कैसा पड़ा।
फैसले की घड़ी आ गई सामने
सूझता ही नहीं मार्ग ऐसा अड़ा।
प्रीति सुराना
0 comments:
Post a Comment