सुनो!!
गर्म कॉफी की चुस्कियों सी हैं,.
तुम्हारी बातें,
तुम्हारी यादें,.
मुझे नापसंद,
जलाती हुई,
कड़वाहट भरी,..
मगर सुबह नींद से उठते ही,
मेरी पहली आदत,
और जरुरत भी,..
क्यूंकि
ये कड़वी चुस्कियां ही
देती है रात की नींद के बाद ताज़गी,..
और हां!!
मुझे जीने के लिए स्फूर्ति भी
मैं निम्नरक्तचाप की मरीज़ जो हूं,...
दरअसल
ये ही सच है
"मेरा मर्ज़ भी तुम और इलाज़ भी तुम" ,.. प्रीति सुराना
वाह, बहुत सुन्दर
ReplyDeleteगहरी, मर्ज़ भी, इलाज़ भी।
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