Monday, 21 December 2015

समर्पण का पारितोषक,..

खुद को तुममें खोकर ही
जाना है मैंने
खुद को पाना क्या होता है,...!!

सुनो!
क्या प्रेम
सचमुच एक तप है,..???
जो
स्वयं की तलाश को
पूर्ण करता है,...

शायद प्रेम को
छलावा या भ्रम
कहने वालों ने
प्रेम को समझने के लिए
खुद को कभी
पूर्णतः समर्पित
किया ही न हो,..

सच
खुद को खोकर
तुम्हे पाकर ही मैंने समझा है,.
समर्पण का मोल,..
समर्पण का महत्त्व,..
समर्पण का पारितोषक,..

हां
आज तुम्हारे रूप में
मेरी तपस्या फलीभूत हुई है,..प्रीति सुराना

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