Thursday 10 December 2015

एक सपना जो साकार हुआ

5 - 10 दिसंबर 2015 के बीच चल रहे चौथे दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल (DIFF 2015) के लिए मेरी ये कविता चयनित हुई थी!

दिल्ली के इस फिल्म फेस्टिवल में फिल्म के साथ कला और साहित्य को बढ़ावा देने के लिए भी कार्य किये जाते हैं !
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ये लिंक है
http://www.delhiinternationalfilmfestival.com/indianpoet12/

"छटपटाहटें अभी बाकी हैं"

सूखी तप्त जमीन पर दरारें,
मौसम में नमी,
आसमान मे बादल,
मौसम में उमस भरी घुटन से
घर के भीतर जी घबराने लगा,...

इस छटपटाहट से राहत के लिए,
खुले आसमान के नीचे निकल आई,
अचानक तेज गड़गड़ाहट के साथ
बरस पड़े बादल,
और मैंने पसार ली अपनी बांहें,...

बरसती बरखा की हर बूंद को
अपने वजूद में उतार कर,
मिटाना चाहती थी शुष्क दरारों को,
मन की धरा को सींचकर
निकाल देना चाहती थी सारी घुटन,..

तभी मेरी खुली बांहों ने
खुद को भींच लिया खुद में,
बहने लगे आंखों से आंसू,
गरजते हुए बादलों का साथ दिया
मेरी सिसकियों ने,....

फिर धीरे से खुल गया मौसम और बांहे,
थम गए बारिश और आंसू,
रूक गई गड़गड़हट और सिसकियां,
मिट गई उमस और घुटन,
सुधर गया मौसम और मन,...

पर सुनो!!!

तुम ये न समझ लेना कि अब बारिश नही होगी,
अभी तो आया है बारिश का मौसम,...
बादल फिर आएंगे और गम भी,
अभी "लौट आई है मु्स्कुराहटें" तो क्या हुआ,
मन की गहराई में कहीं "छटपटाहटें अभी बाकी हैं",.....प्रीति सुराना

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