Friday, 31 July 2015

एक नया मन,...

( अरे!! ये क्या कर रही हो तुम,..??? गुस्सा मत करो,..छोड़ो इसे,..मैं नया ला दूंगा,..तुम रो क्यूं रही हो,..पहले इधर बैठो कितना खून बह रहा है,...मैं जख्मों पर मरहम लगा देता हूं,...)

अकसर यूंही
जरा सी लापरवाही,...
और चीज़ें टूटकर बिखर जाती है,..
और एकदम से 
गुस्से,क्षोभ और दुख की 
मिश्रित प्रतिक्रिया के फलस्वरूप 
बिना सोचे समझे हम समेटने लगते हैं
उन टूटी बिखरी चीजों को
और लहूलुहान कर बैठते है अपने हाथ
और फिर अपने हाथों में हाथ लेकर 
मरहमपट्टी करना,.
आंसू पोछना,..
प्यार,..मनुहार,..अपनापन 
और इस तरह एक बार फिर सब कुछ सामान्य हो जाता है,..


जिंदगी में कई बार
या शायद बार-बार,...
इसी तरह की 
ज़रा ज़रा सी लापरवाहियों में 
टूटता है अकसर मन भी,...
तब भी होते हैं 
आंखों में आंसू,.
दर्द और गुस्सा,...
तब भी मिलता है
तुम्हारा 
प्यार,..मनुहार,..अपनापन 
और इस तरह 
एक बार फिर सब कुछ सामान्य सा,....हो जाता है,..

पर सुनो !!!!!!!!!
टूटी हुई चीजें तो तुम नई ला दोगे,..
पर कंहा से लाओगे 
हर बार नेरे लिए
एक नया मन,...
तुम्हे नही लगता
रिश्तों मे हमेशा लापरवाही नही 
बल्कि कभी कभी सावधानी भी बहुत जरूरी है,......

ओहो,..... क्राकरी ही तो टूटी है,...मैं भी ना,.... जाने क्या क्या सोचती रहती हूं,.....प्रीति सुराना

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