पहली बारिश और तुम्हारी याद
ना ना,..
मुझे वो बारिशें कतई याद नहीं
जब हम मिलकर बनाई कागज़ की कश्ती
पहली बारिश के बाद तिरया करते थे,...
और ना मैं याद कर रही हूं
क़ि मुझे भीगते हुए देखना
तुम्हे कितना पसंद था,.....
और ना मैं कभी याद करती हूं
कि मैं मिली थी कभी तुमसे
ऐसे ही भीगे भीगे मौसम में,..
क्यूंकि मुझे बस इतना ही याद है,
तुम जुदा हुए थे ऐसी ही
पहली बारिश में भीगते हुए मुझसे,..
सुनो
तब से आज तक मैंने कभी
पहली बारिश का इंतज़ार नहीं किया,..
क्यूंकि तब से आज तक मन भीगा भीगा ही तो है,..
बारिशें रुकी ही नहीं मन के आंगन में
अबतक उस पहली बारिश के बाद,..
बदला ही नहीं तब से आज तक
मन का मौसम,..
सालों हुए कभी "सूखा" या "अकाल"
नहीं देखा,..
मेरी आंखो और मन के उस कोने ने
जंहा तुम रहते थे,.....प्रीति सुराना
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