Wednesday 20 May 2015

बिखरा-बिखरा बादल


सूने-सूने आसमान में बिखरा-बिखरा बादल हूं,.. 

भीगी-भीगी आंखों का मैं..फैला-फैला काजल हूं,...

गम में हंसती,..ख़ुशी में रोती,..जिसको सब पागल कहते हैं,..,. 

सिमटी-सिमटी यादों का मै महका-महका आंचल हूं,.. ...प्रीति सुराना

0 comments:

Post a Comment